Saturday 19 October 2013

बापू के बहाने......... 3



प्रजा के मन की थाह लेने और उनके दुख-सुख जानने के लिए राजा राम रोज देर रात नगर भ्रमण पर निकलते थे। एक दिन भ्रमण के दौरान सीता जी या फिर अपने लिए धोबी द्वारा व्यक्त किए गए विचार उनके कानों में पड़े। परिणाम में सीता का गृह त्याग हुआ। उस सीता का जो अयोध्या वापसी के पूर्व ही अग्नि परीक्षा दे चुकी थीं। (रामचरित मानस का लंका कांड दोहा 108) ये परीक्षा उस सीता को देना पड़ी थी जो राम के कहने पर ही हरण से पहले ही अग्नि में समा गईं थीं और पंचवटी में सिर्फ उनकी छाया वास कर रही थी। (रामचरित मानस का अरण्य कांड दोहा 23) सीता से ये गृह त्याग उन्ही राम ने करवाया था जो जानते थे कि रावण तो सीता की छाया को हर कर ले गया था। फिर राम ने ऐसा क्यों किया……..? फिर सीता ने गृह त्याग क्यों किया.....? राम उस धोबी को चुप भी तो करवा सकते थे.....कारावास में भेज सकते थे, मरवा भी सकते थे........लेकिन राम इस संभावना को तो खत्म नहीं कर सकते थे कि कई लोगों के दिमाग में वैसा ही विचार हो जैसा कि धोबी के मुह से बाहर आया था.... साथ ही राजा की सत्ता का भय भी दिमाग में हो....... प्रजा के उन अप्रकट विचारों के कारण राम और सीता ने वह किया जिसकी विवशता तो कतई नहीं थी।
सार्वजनिक क्षेत्र में लांछन और कलंक के साथ गुजारा नहीं हो सकता। अपनी छवि अक्षुण ने के लिए आम जन और उसके विचारों-भावनाओं के प्रति जवाबदेह होना ही पड़ता है।
भय के कारण दबे हुए हुए विचार अगर अब सामने आ रहे हैं, लड़कियां-महिलाएं अगर खुद सामने आ रही हैं तो आसाराम बापू और उनके पुत्र नारायण स्वामी को भी अग्नि परीक्षा के लिए अपने आपको प्रस्तुत कर देना चाहिए।

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